Wednesday, November 27, 2019

53 करोड का गबन के मामले मे, कार्रवाई की संस्तुति





2011-12 का मामला, तत्कालीन आर.एम.ओ. जो कि प्रभारी आर.एफ.सी. का भी कार्य देख रहे थे तथा वर्तमान में मेरठ में तैनात हैं अखिलेश पाण्डे आर.एफ.सी. और लगभग 15 केन्द्र प्रभारी फंसे 

 

खाद्य तथा रसद विभाग के आजमगढ़ मंडल में वित्तीय वर्ष 2011-12 के दौरान धान खरीद में 53 ़15 करोड का गबन सामने आया है। आजमगढ़, मऊ और बलिया की 139 राइस मिलों खाद्य विभाग का फंसा 53 ़15 करोड रूपये निकालने में अधिकारियों के नाकाम होने  पर इसे वित्तीय क्षति मानते हुए तत्कालीन आरएमओ जो कि सम्भागीय खाद्य नियन्त्रक का कार्य भी देख रहे थे तथा वर्तमान में मेरठ के आर.एफ.सी. पद पर तैनात हैं,  डिप्टी आरएमओ और कंेद्र प्रभारियों को दोषी माना गया है। आजमगढ़ के आयुक्त कनक त्रिपाठी ने सभी अधिकारियों पर विभागीय और विधिक कार्रवाई की संस्तुति करते हुए फाइल शासन को भेज दी है। इसी के साथ पूरे प्रकरण की जांच ईओडब्ल्यू से कराने की संस्तुति की है। 

 

आयुक्त कनक त्रिपाठी ने बताया कि खरीफ विपणन वर्ष 2011-12 में धान खरीद के तहत कस्टम चावल के सापंेक्ष जारी आर.सी वसूली की समीक्षा में पता चला कि वर्ष 2011-12 में कस्टम चावल भंडारण के लिए तय तिथि 31 मार्च 2013 समाप्त होने के बाद खाद्य विभाग का 32600 ़94 एमटी चावल अब भी मिलों पर बकाया है। इसका मूल्य 72 ़82 करोड है। प्रकरण में आरएफसी के माध्यम से केंद्र प्रभारी, बकाएदार चावल मिल, मिल पर बकाया कुल कस्टम चावल और उसकी धनराशि और अब तक इसके सापेक्ष की गई वसूली आदि बिदुंओं की जांच कराई गई। पाया गया कि आजमगढ़ के 12 क्रय कंेद्रों से संबद्व राइस मिलों पर 5606 ़73 एमटी चावल बकाया है। इसकी धनराशि 1252 ़39 लाख रूपये धनराशि होती है। इसमें अभी भी 776 ़85 लाख रूपये बकाया है। मऊ में नौ क्रय केंद्रों पर 5950 ़09 एमटी चावल बकाया है। इसकी धनराशि 1529 ़08 लाख है। इसमें 813 ़12 लाख की धनराशि अब भी बकाया है। बलिया के 12 क्रय केंद्रों पर कुल 21044 ़12 एमटी चावल बकाया है। इसकी धनराशि 4700 ़67 लाख है। 3725 ़40 लाख की धनराशि अभी तक बकाया है। 

वर्ष 2011-12 में तत्कालीन आरएफसी आरएमओं, तीनों जनपद के डिप्टी आरएमओं आजमगढ़ में 12, मऊ के नौ और बलिया में 12 कंेद्र प्रभारियों केे विरूद्व कारवाई की संस्तुति की गई है। जांच में यह भी पाया गया कि तीनों जनपदों में 139 राइस मिलों में 80 राइस मिलों से बैंक गारंटी भी जमा नही कराई गई थी, जो कि धोर अनियमितता है। खाद्य विभाग को 53 ़15 करोड की वित्तीय क्षति हुई है। देखने का विषय है कि 53 करोड़ के घोटाले के बावजूद भी शासन स्तर से ऐसे भ्रष्ट अधिकारी की पदोन्नति कर मेरठ सम्भाग में तैनात किया गया है।  अधिकारियों के द्वारा खाद्य विभाग के अनुभाग-1 में पत्रावली को दबा दिया गया प्रतीत होता है। जिसकी जांच होनी आवश्यक है। 

 

मेरठ सम्भाग में भी केन्द्र रजपुरा पर हुए खाद्यान्न घोटाले की जांच में भी मेरठ के सम्भागीय विपणन अधिकारी श्री दिनेश चन्द मिश्र व सम्भागीय वरिष्ठ वित्त एवं लेखाधिकारी श्री पंकज चतुर्वेदी तथा जिला खाद्य विपणन अधिकारी के विरूद्ध मेरठ मण्डल के आयुक्त श्री प्रभात कुमार जी द्वारा संयुक्त आयुक्त (खा़द्य) मेरठ मण्डल से जांच करायी गई थी उनके द्वारा श्री दिनेश चन्द मिश्र सम्भागीय खाद्य विपणन अधिकारी को भी दोषी माना था, लेकिन इनके द्वारा शासन स्तर पर खाद्य विभाग के अनुभाग-1 में सेंटिग गेंटिग कर अपने विरूद्ध होने वाली कार्यवाही को पत्रावली सहित दफना दिया गया है। 

आर.एफ.सी व सम्भागीय खाद्य विपणन अधिकारी श्री दिनेश कुमार मिश्र मेरठ द्वारा मेरठ सम्भाग में भी खेला जा रहा शासन को वित्तीय हानि पहुँचाने का खेल। 

मेरठ के आर.एफ.सी श्री अखिलेश पाण्डे के द्वारा अपने भतीजें को भी मानव संशाधन में दिखाकर केन्द्र नोयडा पर अतुल्य पाण्डे के नाम से भुगतान प्राप्त किया इसी प्रकार आर.एम.ओ. मेरठ श्री दिनेश कुमार मिश्र के द्वारा भी केन्द्र परीक्षितगढ़ पर धान खरीद में पवन कुमार के नाम से बिल न0 13 दिनांक 11.12.2017 में 13200/- रूपये का भुगतान प्राप्त किया जिसका एकाउण्ट न0 38820100007774 बैंक ऑफ बड़ोदा से लिया है। सूत्रों के अनुसार पवन कुमार नामक व्यक्ति इनका पर्सनल ड्राईवर है जो कि इनके गृह निवास रायबरेली में रहता है। आपको यह भी बता दें कि वर्तमान में भी शासन के द्वारा स्वीकृत कर्मचारियों के अनुसार कर्मचारी तैनात हैं, लेकिन अभी भी अपनी मोनो पोली बनाकर मानव संशाधन में कर्मचारी को रखकर शासन को वित्तीय हानि पहुँचायी जा रही है। यहां तक कि सम्भाग में मुख्यालय पर क्षेत्रीय विपणन अधिकारी श्रीमती रमण लता, श्रीमती शशी शर्मा तथा विपणन निरीक्षक पवन धामा जिन्हें अनाधिकृत रूप से कार्यालय अधीक्षक के पद पर तैनात किया हुआ है व श्रीमति अचैना चाहल आदि तैनात हैं और केन्द्रो पर लिपिक जो कि स्थापना का भी कार्य देख रहे हैं उन्हें वसूली हेतु केन्द्र हस्तिनापुर पर भी लगा रखा है। इसी प्रकार मेरठ सम्भाग के कई केन्द्रो पर लिपिकीय कर्मचारी आयुक्त महोदय के आदेश के विपरीत कार्य कर रहे हैं। यहाँ तक कि विवादित रहे क्षेत्रीय विपणन अधिकारी शरत चन्द शर्मा जिन के विरूद्ध शासन स्तर पर आय से अधिक सम्पत्ति की जांच भी श्री अर्चना अग्रवाल खाद्य आयुक्त द्वारा जारी की गई थी जिसे इनके द्वारा भी उनके स्थानान्तरण के बाद दबवा दी गई और धीरे से इन आई.ए.एस. अधिकरियों की रिपोर्ट को हटवाकर विभागीय अधिकारी से निबटवा दी गई जिसकी पुनः खुली जांच होनी चाहिए, जो कि अगस्त में सेवानिवृत्त हो चुके हैं उन्हें कार्यालय में बुलाकर ठेकेदारों की नियुक्ति कराने में मशविरा लिया जा रहा है।   

 

मेरठ सम्भाग में डोर स्टैप डिलीवरी में निरन्तर लगभग 27 बार विज्ञापन प्रकाशित कराये गये जिससे वर्ष में लाखों का छोटे बड़े साप्ताहिक समाचार/दैनिक समाचार पत्र तथा पाक्षिक समाचार पत्रों में विज्ञप्ति देकर लाखेों का भुगतान किया गया है और अभी तक टेण्डर मंजूर नही हुए हैं। मेरठ सम्भाग में डोर स्टैप डिलीवरी के लिए मात्र 6-7 व्यक्तियों के द्वारा विभाग में रजिस्टेªशन कराया है। टेन्डर भी पंजीकृत ठेकेदारों को ही डालना है जिन पर निविदायें प्रकाशित कराकर लाखों का भुगतान धान/रबी खरीद में किया गया है जिसके लिए कौन दोषी है। क्या माननीय मुख्यमन्त्री जी इस ओर ध्यान देंगे और अपने ही विभाग में चूना लगा रहे अधिकारियों के विरूद्ध कार्यवाही करेंगे। पंकज चतुवेदी सम्भागीय वरिष्ठ वित्त एवं लेखाधिकारी , मेरठ का स्थानान्तरण होने के बाद भी अभी तक नये स्थान पर पद ग्रहण करने के लिए कार्यमुक्त नही किया गया है। 

श्री पंकज चतुर्वेदी के द्वारा अपने अधिकारों का दुरूपयोग कर वित्तीय हानि पहुँचायी। स्थानान्तरण होने के बाद भी कार्यमुक्त नही  हो रहे-

 

श्री ऋृषि कान्त सेवा निवृत्त विपणन निरीक्षक के पेन्शन प्रपत्र 9 लाख की रिकवरी होने पर भी सम्भागीय वरिष्ठ वित्त एवं लेखाधिकारी (खाद्य) मेरठ श्री पंकज चतुर्वेदी के द्वारा अपने अधिकार का दुरूपयोग करते हुए अपर निदेशक पेन्शन एवं कोषागार को पेन्शन प्रपत्र अग्रसरित किये गये जबकि विभाग में सम्भागीय खाद्य नियन्त्रक श्री अखिलेश पाण्डे नियुक्त थे। यह जानते हुए भी कि 9 लाख की रिकवरी श्री गौड़ पर है फिर भी इनके विरूद्ध 350 ए में कार्यवाही न कर पेन्शन निर्धारित करा दी गई। जबकि मात्र 6 लाख की उपादान राशि स्वीकृत की गई है। तीन लाख की राशि बिना किसी हैड में जमा कराये शासन को वित्तीय हानि का प्रयास किया गया और सम्भागीय वरिष्ठ वित्त एवं लेखाधिकारी के द्वारा अपने अधिकारो का दुरूपयोग कर शासन को वित्तीय हानि पहुँचायी गयी है। खाद्य विभाग मेरठ कार्यालय का यह गत्भीर मामला है जिसकी जांच कम से कम मण्डलायुक्त स्तर के अधिकारी से कराने हेतु विभाग के कर्मचारी द्वारा शासन को लिखा है। देखना है शासन भी इस ओर ध्यान देता है अथवा इसे रददी की टोकरी में डाल देंगा।