Sunday, July 12, 2020

असलियत   बयाँ    मैं    करूँ   कैसे :- डॉ. राज

असलियत   बयाँ    मैं    करूँ   कैसे 

जब    चेहरे    पर    चढ़ा   हो   पर्दा

मैं   लोगों   के   काम   आऊँ    कैसे 

जब    घरों    की   शान   बनी   पर्दा

समझना  चाहा  उन्हें  समझ न सका 

जब  जुबाँ  पर  उनके  चढ़ा  हो पर्दा

सुर्खरू  क्यूँ  न  हो  दिल  किसी का

जब  असल की पहचान पर हो पर्दा

पर्दों  के  दिलों  में  राज  छुपा  रहता

क्योंं   उठाऊँ   किसी   का  मैं   पर्दा 

गड़े     मुर्दे    तब   हरदम    उखड़ेंगे 

गर    करूँ   मैं    किसी   को  बेपर्दा

शहर   में   है   खेल  आज  पर्दों  का

न    हटाओ    घरों    से   कोई   पर्दा 

बनी  रहेगी  सबकी  शानो शौकत भी 

जब   लगा   रहेगा   दीवारों   पे  पर्दा

करता   हूँ  खुदा  से  दुआएँ  हर  पल

दोस्तों   के  बीच  न  हो  कभी  परदा

 

डॉ. राज कुमार उपाध्याय

एसोसिएट प्रोफेसर 

विधि विभाग, मेरठ कॉलेज मेरठ