Wednesday, July 12, 2023

पत्रकारिता की गरिमा को धूमिल कर रहे चाटुकार पत्रकार????

 

वन कर्मी लगा रहे वन विभाग के राजस्व को चूना 

जिले में हो रहा फलदार पेड़ों का अवैध कटान

तलुएचाटुकार नहीं है ईमानदार व पत्रकारिता के प्रति समर्पित तलुएचाटुकार पत्रकार को ही मिलती है इज्जत ? 

तलुएचाटुकार पत्रकार की शह पर पुलिस अधिकारियों के नाम पर हर गलत काम में शामिल है तलुएचाटुकार पत्रकार ????

पुलिस अधिकारी तलुएचाटुकार पत्रकारों पर नहीं करते  कार्यवाही आखिर क्यों???

बात में तो दम है लेकिन आज सटीक और निष्पक्ष पत्रकारिता करना इतना आसान भी नहीं है बल्कि यह कहिए कि इज्जत और जीवन दोनों को खतरे में डालने से कम नहीं है, लेकिन फिर भी कुछ ऐसे पत्रकार अभी हैं कि जिन्हें प्रशासन व समाज के सम्मुख किसी भी प्रकरण से संबंधित सच्चाई उजागर करने का शौक है, हालांकि ऐसे पत्रकारों को कभी कभी बेगुनाह होते हुए भी अपमानित होना पडता है और इसमें भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी / नेता की सह पर कानून की धज्जियां उडाने वाले लोगों का खेल होता है ! अब देखिए प्रदेश सरकार करोड़ों खर्च करके हरा भरा प्रदेश बनाने के लिए हर साल पौधारोपण अभियान चलाती है, बुलंदशहर में भी वन विभाग अन्य विभागों को साथ लेकर शायद इस वर्ष जुलाई 2023 में 33 लाख पौधे लगाने की मसककत में जुटा है और जुटना भी चाहिए, लेकिन पिछले 5 सालों में कुल कितने पौधे पौधारोपण अभियान में लगाए गए और उनको लगाने में सरकार का कितना धन खर्च हुआ और उन पौधों में जिंदा कितने पौधे रहे हैं अगर किसी ने पूछ लिया तो समझ लो कि चाटुकारिता की पत्रकारिता करने वालों के सहयोग से उसे अपमानित कराने में कुताही नहीं बरती जाएगी,मजे की बात देखिए सरकार द्बारा प्रतिबंधित पेडों का अबैध कटान जिले में होने से हरियाली लुप्त हो रही है और वन विभाग मौन बना रहता है और यदि कोई अबैध कटान होने की सूचना वन विभाग के अधिकारी/ कर्मचारी को देता है तो सूचना देने वाले का नाम प्रतिबंधित पेडों का अबैध कटान करने वाले को बताकर दुश्मनी कराने में गुरेज नहीं करते,हां इतना जरूर कर देते हैं कि थोड़ा बहुत जुर्माना लगा कर इतिश्री कर देते हैं जबकि वनकर्मियों के इस रविए से कटान की सूचना देने वाले को कभी कभी बेगुनाह होते हुए भी कीमत चुकानी पड़ सकती है ! कड़वा सच यह भी है कि वन विभाग यदि सरकार द्बारा प्रतिबंधित पेडों के कटान हेतु आवेदन पत्र पर नियमानुसार अनुमति पत्र बिना टालमटोल उपलब्ध करा दे तो शायद अबैध कटान न होने पाएं लेकिन होता क्या है कि विभाग द्वारा कटान की परमिशन आसानी से दी नहीं जाती और अवरोधक बने पेड़ को काटना किसान को जरुरी हो तो किसान की सहमति पर लकडी माफिया विभाग के कुछ कर्णधारों की मिलीभगत पर कानून के खिलाफ जाकर पेडों का कटान कर डालता है और इस तरह परमिशन के बदले जो धन विभाग के राजस्व में जमा होना चाहिए था शायद भ्रष्ट वनकर्मियों की जेबों में चला जाता है, जिससे विभाग के राजस्व को काफी नुकसान पहुंचता है अब सोचो कि यदि बाड ही खेत को नुक्सान पहुंचाना शुरू कर दें तो खेत को बचाएगा कौन ?

बुलंदशहर वरिष्ठ पत्रकार आनंद शर्मा जी की कलम से