बुलंदशहर एंटी करप्शन मेल समाचार पत्र उत्तर प्रदेश हेड आनंद शर्मा की कलम से
घूंसखोर पुलिस व वनकर्मी लकड़ी माफियाओं के सामने हैं नतमस्तक
वैध कटान की सूचना देने वाले का नाम बताकर रंजिश करा देते हैं वनकर्मी
अवैध कटान होने से भ्रष्ट वनकर्मियों की बल्ले बल्ले, विभाग के राजस्व को लगता है चूना
बुलंदशहर - बहुत ही पुरानी कहावत है कि जब हर शाख पर उल्लू बैठा हो तो हाल ए गुलिस्तां क्या होगा , ये लाइनें जिले में सरकार द्बारा प्रतिबंधित हरे पेड़ों के हो रहे अवैध कटान को लेकर वन विभाग और पुलिस के भ्रष्ट और घूंसखोर कर्मियों पर सटीक ही बैठी प्रतीत होती हैं ! प्रतिबंधित हरे व फलदार पेड़ों का अवैध कटान न होने देने का जिम्मा पुलिस व वनकर्मियों का ही है लेकिन लगता है कि घूंसखोरी के बल पर लकड़ी माफियाओं के हौंसले बुलंद हैं और रोजाना ही प्रतिबंधित पेडों का अवैध कटान कर सड़क रास्ते ही पुलिस के जांबाजों की नजरों के सामने से लकड़ी मंडी पहुंचते हैं ! अब ऐसा होता है तो कोई तो कारण होता ही होगा कि पुलिस अपनी आंखें बंद रखती है, एक बिना हेलमेट पहने दुपहिया चालक का पुलिस कर्मियों की नजर से बचकर निकलना नामुमकिन होता है तो फिर वो कारण हो सकता है क्या कि लकड़ियों से भरी ट्रैक्टर ट्राली और अन्य गाडियां पुलिस कर्मियों की नजरों के सामने से गुजरती हैं और इन्हें दिखाई ही नहीं देतीं , इससे बिल्कुल साबित होता है कि दाल में कुछ काला ही नहीं पूरी की पूरी दाल ही काली है,अब यह बताने की जरूरत ही नहीं कि आंखें बंद रखने की एवज में लकड़ी मंडी के जिम्मेदार लोगों की और से नजराना तो जरूर मिलता होगा और यदि मिलता नहीं है तो फिर वो कौन सा दवाब है कि कानून का उलंघन हो रहा है और पुलिस कर्मी आंखें बंद रखने को हैं मजबूर ?
जिले में हरियाली लुप्त ना हो हर साल सरकार वन विभाग के माध्यम से पौधारोपण अभियान चलाकर अपार धन खर्च करती है , यहां तक तो ठीक है लेकिन पौधारोपण अभियान के तहत लगे पौधों में से जिंदा बचे हैं कितने कोई पूछ बैठे तो शायद ही जबाब मिल पाए ! कहीं भी प्रतिबंधित पेडों का अवैध कटान न होने देने की जिम्मेदारी वन विभाग की है लेकिन विभाग के ही कुछ भ्रष्ट और घूंसखोरों की वजह से रोजाना होता है प्रतिबंधित पेडों का अवैध कटान ! नियम है कि परमिशन वन विभाग से लेकर जरुरतमंद प्रतिबंधित पेडों का कटान कर सकता है बस बदले में कुछ रुपए नए पेड़ लगाने के लिए जमा करने होंगे लेकिन वनकर्मी आसानी से नहीं बनने देते हैं परमिशन,थक हारकर जरूरतमंद किसान हो या फिर लकड़ी कारोबारी को वनकर्मियों के रहमो-करम पर ही निर्भर रहना पड़ता है वो बात अलग होती होगी कि जो रुपया विभाग के राजस्व में जमा होना चाहिए उस रुपए का होता है बंदरबांट और विभाग के राजस्व को लगता है चूना,ऐसी चर्चाएं आम सुनने को मिलती हैं और सच भी महसूस होता है क्योंकि कोई भी व्यक्ति प्रतिबंधित पेडों का अवैध कटान बिना वनकर्मियों की मिलीभगत भगत के कर ही नहीं पाएगा क्योंकि वनकर्मियों की यही तो ड्यूटी है ! कुछ लोगों का कहना रहा कि यदि कोई अवैध कटान होने की सूचना वनकर्मियों को देता है तो उसके खिलाफ कार्यवाही करने की लीपापोती ही करते हैं लेकिन सूचना देने वाले का नाम बताकर उसकी रंजिश कराने में जरा भी वनकर्मी गुरेज नहीं करते हैं, किसी पर 5 तो किसी पर 50 हजार रुपए का जुर्माना ,सब इनके रहमो-करम पर ही निर्भर होना पता चला है !
सूत्रों की मानें तो गत दिनों बहलीमपुरा गांव में हुए आम के हरे पेड़ों के अवैध कटान की एक नही कई व्यक्तियों ने फोन पर वनविभाग के जिम्मेदार अफसरों को सूचना दी गई लेकिन हुआ क्या ढाक के तीन पात, पता
चला है कि वन कर्मियों को जहां हुआ अवैध कटान वहां तक पहुंचने में 14 घंटे लगे जबकि रास्ता लगभग 10 मिनट से ज्यादा का नही होना पता चला है, अब सोचो कि ऐसा किया क्यों ? 14 घंटे बाद वनकर्मी ने काटे गए आम की जो संख्या बताई हजम होने वाली इसलिए नहीं है क्योंकि सैंठियों से भरी ट्रैक्टर ट्राली जो वनकर्मी ने मछली मार्केट इस्लामाबाद पर 14 घंटे पहले पकड़ी और छोड़ दिया उससे मेल बैठता ही नहीं है,, कोई पूछे कि 14 घंटे तक कोई भी अपने खिलाफ सबूत को मौके पर ही रहने देगा, लेकिन वनविभाग के कानून हों कुछ भी होता है वही जो चाहेंगे जांबाज वनकर्मी !
ऐसा नहीं है कि वनकर्मी और पुलिस ही सरकार द्बारा प्रतिबंधित पेडों के अवैध कटान के लिए दोषी हैं, हम और आप भी दोषी हैं और वो इसलिए कि लकड़ी माफियाओं के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं,वरना हिम्मत करे इंसान तो हो क्या नहीं सकता !